कितनी अच्छी नदियाँ हैं, कल कल कर के बहती हैं,
चिड़ियों की आवाजें भी, कैसा जादू करती हैं.
पर्वत पर सूरज निकला है, किरने छन कर आती हैं,
पेड़ों के पत्तों से मिल कर, सुन्दर छवि बनाती हैं.
पत्तों पर ये ओस की बूंदे, मोती जैसी लगती हैं,
फूलों की खूशबू भी देखो, कितनी प्यारी लगती है.
हरियाली खेतों में छाई, फसलें खड़ी लहलहाती हैं,
गेहूं की बालें भी देखो, मधुर संगीत सुनाती हैं.
इस कविता का एक यथोचित अंत करने का प्रयास काफी दिनों से कर रहा हूँ, पर नहीं हो पा रहा है. इसलिए इसे मैं यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ, आपके सुझाव के लिए.