पत्थरों के हैं ये जंगल, पत्थरों के ये मकां,
बन गया है आज देखो, पत्थरों का ये जहाँ।
बन गया इंसा भी देखो, आज यूँ पत्थरों का,
भावनाएं पत्थरों की, दिल भी पत्थर का हुआ।
क्या यही थी आशाएं, जब मिली आज़ादी थी,
वो (अँगरेज़) तो थे बेदर्द ज़ालिम, ये भी यूँ निष्ठुर मिले (नेता)।
ठग रहे हैं हमको ये, हर पल यहाँ इस देश में,
कुछ जेल में, कुछ आसनों पे, कुछ साधुओं के वेश मे।
पर सोच के देखो जरा, इन्हें, किसने दिया अधिकार है,
यूँ लूटने का, छीनने का - हमारा क्यूँ नहीं प्रतिकार है,
बन गया है आज देखो, पत्थरों का ये जहाँ।
बन गया इंसा भी देखो, आज यूँ पत्थरों का,
भावनाएं पत्थरों की, दिल भी पत्थर का हुआ।
क्या यही थी आशाएं, जब मिली आज़ादी थी,
वो (अँगरेज़) तो थे बेदर्द ज़ालिम, ये भी यूँ निष्ठुर मिले (नेता)।
ठग रहे हैं हमको ये, हर पल यहाँ इस देश में,
कुछ जेल में, कुछ आसनों पे, कुछ साधुओं के वेश मे।
पर सोच के देखो जरा, इन्हें, किसने दिया अधिकार है,
यूँ लूटने का, छीनने का - हमारा क्यूँ नहीं प्रतिकार है,